Wednesday, September 1, 2010

जाके प्रिय न राम -बैदेही --तुलसीदास

जाके प्रिय राम-बैदेही।

तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥

तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषण बंधु, भरत महतारी।

बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज-बनितन्हि, भये मुद-मंगलकारी॥

नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेब्य जहाँ लौं।

अंजन कहा आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं॥

तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रानते प्यारो।

जासो होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो॥

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