Friday, July 30, 2010

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हिन्दू धर्म के संस्कार

सनातन धर्म के संस्कार सनातन अथवा हिन्दू धर्म">हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का अविष्कार किया।धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है। प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है। इनमें पहला गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है। गर्भाधान के बाद पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण ये सभी संस्कार नवजात का दैवी जगत् से संबंध स्थापना के लिये किये जाते हैं। नामकरण के बाद चूडाकर्म और यज्ञोपवीत संस्कार होता है। इसके बाद विवाह संस्कार होता है। यह गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। हिन्दू धर्म में स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सबसे बडा संस्कार है, जो जन्म-जन्मान्तर का होता है। विभिन्न धर्मग्रंथों में संस्कारों के क्रम में थोडा-बहुत अन्तर है, लेकिन प्रचलित संस्कारों के क्रम में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि ही मान्य है। गर्भाधान से विद्यारंभ तक के संस्कारों को गर्भ संस्कार भी कहते हैं। इनमें पहले तीन (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन) को अन्तर्गर्भ संस्कार तथा इसके बाद के छह संस्कारों को बहिर्गर्भ संस्कार कहते हैं।
गर्भ संस्कार को दोष मार्जन अथवा शोधक संस्कार भी कहा जाता है। दोष मार्जन संस्कार का तात्पर्य यह है कि शिशु के पूर्व जन्मों से आये धर्म एवं कर्म से सम्बन्धित दोषों तथा गर्भ में आई विकृतियों के मार्जन के लिये संस्कार किये जाते हैं। बाद वाले छह संस्कारों को गुणाधान संस्कार कहा जाता है। दोष मार्जन के बाद मनुष्य के सुप्त गुणों की अभिवृद्धि के लिये ये संस्कार किये जाते हैं। हमारे मनीषियों ने हमें सुसंस्कृत तथा सामाजिक बनाने के लिये अपने अथक प्रयासों और शोधों के बल पर ये संस्कार स्थापित किये हैं। इन्हीं संस्कारों के कारण भारतीय संस्कृति अद्वितीय है। हालांकि हाल के कुछ वर्षो में आपाधापी की जिंदगी और अतिव्यस्तता के कारण सनातन धर्मावलम्बी अब इन मूल्यों को भुलाने लगे हैं और इसके परिणाम भी चारित्रिक गिरावट, संवेदनहीनता, असामाजिकता और गुरुजनों की अवज्ञा या अनुशासनहीनता के रूप में हमारे सामने आने लगे हैं। समय के अनुसार बदलाव जरूरी है लेकिन हमारे मनीषियों द्वारा स्थापित मूलभूत सिद्धांतों को नकारना कभीश्रेयस्कर नहीं
सीमन्तोन्नयन सीमन्तोन्नयन को सीमन्तकरण अथवा सीमन्त संस्कार भी कहते हैं। सीमन्तोन्नयन का अभिप्राय है सौभाग्य संपन्न होना। गर्भपात रोकने के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु एवं उसकी माता की रक्षा करना भी इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है। इस संस्कार के माध्यम से गर्भिणी स्त्री का मन प्रसन्न रखने के लिये सौभाग्यवती स्त्रियां गर्भवती की मांग भरती हैं। यह संस्कार गर्भ धारण के छठे अथवा आठवें महीने में होता है। जातकर्म नवजात शिशु के नालच्छेदन से पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। इस दैवी जगत् से प्रत्यक्ष सम्पर्क में आनेवाले बालक को मेधा, बल एवं दीर्घायु के लिये स्वर्ण खण्ड से मधु एवं घृत वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ चटाया जाता है। यह संस्कार विशेष मन्त्रों एवं विधि से किया जाता है। दो बूंद घी तथा छह बूंद शहद का सम्मिश्रण अभिमंत्रित कर चटाने के बाद पिता यज्ञ करता है तथा नौ मन्त्रों का विशेष रूप से उच्चारण के बाद बालक के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की प्रार्थना करता है। इसके बाद माता बालक को स्तनपान कराती है।
नामकरण जन्म के ग्यारहवें दिन यह संस्कार होता है। हमारे धर्माचार्यो ने जन्म के दस दिन तक अशौच (सूतक) माना है। इसलिये यह संस्कार ग्यारहवें दिन करने का विधान है। महर्षि याज्ञवल्क्य का भी यही मत है, लेकिन अनेक कर्मकाण्डी विद्वान इस संस्कार को शुभ नक्षत्र अथवा शुभ दिन में करना उचित मानते हैं। नामकरण संस्कार का सनातन धर्म में अधिक महत्व है। हमारे मनीषियों ने नाम का प्रभाव इसलिये भी अधिक बताया है क्योंकि यह व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है। तभी तो यह कहा गया है राम से बड़ा राम का नाम हमारे धर्म विज्ञानियों ने बहुत शोध कर नामकरण संस्कार का आविष्कार किया। ज्योतिष विज्ञान तो नाम के आधार पर ही भविष्य की रूपरेखा तैयार करता है।
निष्क्रमण दैवी जगत् से शिशु की प्रगाढ़ता बढ़े तथा ब्रह्माजी की सृष्टि से वह अच्छी तरह परिचित होकर दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करे यही इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है। निष्क्रमण का अभिप्राय है बाहर निकलना। इस संस्कार में शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है। भगवान् भास्कर के तेज तथा चन्द्रमा की शीतलता से शिशु को अवगत कराना ही इसका उद्देश्य है। इसके पीछे मनीषियों की शिशु को तेजस्वी तथा विनम्र बनाने की परिकल्पना होगी। उस दिन देवी-देवताओं के दर्शन तथा उनसे शिशु के दीर्घ एवं यशस्वी जीवन के लिये आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है। जन्म के चौथे महीने इस संस्कार को करने का विधान है। तीन माह तक शिशु का शरीर बाहरी वातावरण यथा तेज धूप, तेज हवा आदि के अनुकूल नहीं होता है इसलिये प्राय: तीन मास तक उसे बहुत सावधानी से घर में रखना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे उसे बाहरी वातावरण के संपर्क में आने देना चाहिए। इस संस्कार का तात्पर्य यही है कि शिशु समाज के सम्पर्क में आकर सामाजिक परिस्थितियों से अवगत हो।
अन्नप्राशन इस संस्कार का उद्देश्य शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करना है। अन्नप्राशन का स्पष्ट अर्थ है कि शिशु जो अब तक पेय पदार्थो विशेषकर दूध पर आधारित था अब अन्न जिसे शास्त्रों में प्राण कहा गया है उसको ग्रहण कर शारीरिक व मानसिक रूप से अपने को बलवान व प्रबुद्ध बनाए। तन और मन को सुदृढ़ बनाने में अन्न का सर्वाधिक योगदान है। शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक आहार से ही तन स्वस्थ रहता है और स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। आहार शुद्ध होने पर ही अन्त:करण शुद्ध होता है तथा मन, बुद्धि, आत्मा सबका पोषण होता है। इसलिये इस संस्कार का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। हमारे धर्माचार्यो ने अन्नप्राशन के लिये जन्म से छठे महीने को उपयुक्त माना है। छठे मास में शुभ नक्षत्र एवं शुभ दिन देखकर यह संस्कार करना चाहिए। खीर और मिठाई से शिशु के अन्नग्रहण को शुभ माना गया है। अमृत: क्षीरभोजनम् हमारे शास्त्रों में खीर को अमृत के समान उत्तम माना गया है।
चूड़ाकर्म चूड़ाकर्म को मुंडन संस्कार भी कहा जाता है। हमारे आचार्यो ने बालक के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। इस संस्कार के पीछे शुाचिता और बौद्धिक विकास की परिकल्पना हमारे मनीषियों के मन में होगी। मुंडन संस्कार का अभिप्राय है कि जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है। नौ माह तक गर्भ में रहने के कारण कई दूषित किटाणु उसके बालों में रहते हैं। मुंडन संस्कार से इन दोषों का सफाया होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस संस्कार को शुभ मुहूर्त में करने का विधान है। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यह संस्कार सम्पन्न होता है। विद्यारम्भ विद्यारम्भ संस्कार के क्रम के बारे में हमारे आचार्यो में मतभिन्नता है। कुछ आचार्यो का मत है कि अन्नप्राशन के बाद विद्यारम्भ संस्कार होना चाहिये तो कुछ चूड़ाकर्म के बाद इस संस्कार को उपयुक्त मानते हैं। मेरी राय में अन्नप्राशन के समय शिशु बोलना भी शुरू नहीं कर पाता है और चूड़ाकर्म तक बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति जगने लगती है। इसलिये चूड़ाकर्म के बाद ही विद्यारम्भ संस्कार उपयुक्त लगता है। विद्यारम्भ का अभिप्राय बालक को शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर से परिचित कराना है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी तो बालक को वेदाध्ययन के लिये भेजने से पहले घर में अक्षर बोध कराया जाता था। माँ-बाप तथा गुरुजन पहले उसे मौखिक रूप से श्लोक, पौराणिक कथायें आदि का अभ्यास करा दिया करते थे ताकि गुरुकुल में कठिनाई न हो। हमारा शास्त्र विद्यानुरागी है। शास्त्र की उक्ति है सा विद्या या विमुक्तये अर्थात् विद्या वही है जो मुक्ति दिला सके। विद्या अथवा ज्ञान ही मनुष्य की आत्मिक उन्नति का साधन है। शुभ मुहूर्त में ही विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिये। कर्णवेध हमारे मनीषियों ने सभी संस्कारों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के बाद ही प्रारम्भ किया है।
कर्णवेध संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। बालक की शारीरिक व्याधि से रक्षा ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है। प्रकृति प्रदत्त इस शरीर के सारे अंग महत्वपूर्ण हैं। कान हमारे श्रवण द्वार हैं। कर्ण वेधन से व्याधियां दूर होती हैं तथा श्रवण शक्ति भी बढ़ती है। इसके साथ ही कानों में आभूषण हमारे सौन्दर्य बोध का परिचायक भी है। यज्ञोपवीत के पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में इस संस्कार का सम्पादन श्रेयस्कर है।
यज्ञोपवीत अथवा उपनयन बौद्धिक विकास के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। धार्मिक और आधात्मिक उन्नति का इस संस्कार में पूर्णरूपेण समावेश है। हमारे मनीषियों ने इस संस्कार के माध्यम से वेदमाता गायत्री को आत्मसात करने का प्रावधान दिया है। आधुनिक युग में भी गायत्री मंत्र पर विशेष शोध हो चुका है। गायत्री सर्वाधिक शक्तिशाली मंत्र है। यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं अर्थात् यज्ञोपवीत जिसे जनेऊ भी कहा जाता है अत्यन्त पवित्र है। प्रजापति ने स्वाभाविक रूप से इसका निर्माण किया है। यह आयु को बढ़ानेवाला, बल और तेज प्रदान करनेवाला है। इस संस्कार के बारे में हमारे धर्मशास्त्रों में विशेष उल्लेख है। यज्ञोपवीत धारण का वैज्ञानिक महत्व भी है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी उस समय प्राय: आठ वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हो जाता था। इसके बाद बालक विशेष अध्ययन के लिये गुरुकुल जाता था। यज्ञोपवीत से ही बालक को ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती थी जिसका पालन गृहस्थाश्रम में आने से पूर्व तक किया जाता था। इस संस्कार का उद्देश्य संयमित जीवन के साथ आत्मिक विकास में रत रहने के लिये बालक को प्रेरित करना है। वेदारम्भ ज्ञानार्जन से सम्बन्धित है यह संस्कार। वेद का अर्थ होता है ज्ञान और वेदारम्भ के माध्यम से बालक अब ज्ञान को अपने अन्दर समाविष्ट करना शुरू करे यही अभिप्राय है इस संस्कार का। शास्त्रों में ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई प्रकाश नहीं समझा गया है। स्पष्ट है कि प्राचीन काल में यह संस्कार मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व रखता था। यज्ञोपवीत के बाद बालकों को वेदों का अध्ययन एवं विशिष्ट ज्ञान से परिचित होने के लिये योग्य आचार्यो के पास गुरुकुलों में भेजा जाता था। वेदारम्भ से पहले आचार्य अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य व्रत कापालन करने एवं संयमित जीवन जीने की प्रतिज्ञा कराते थे तथा उसकी परीक्षा लेने के बाद ही वेदाध्ययन कराते थे। असंयमित जीवन जीने वाले वेदाध्ययन के अधिकारी नहीं माने जाते थे। हमारे चारों वेद ज्ञान के अक्षुण्ण भंडार हैं।
केशान्त गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था। वस्तुत: यह संस्कार गुरुकुल से विदाई लेने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का उपक्रम है। वेद-पुराणों एवं विभिन्न विषयों में पारंगत होने के बाद ब्रह्मचारी के समावर्तन संस्कार के पूर्व बालों की सफाई की जाती थी तथा उसे स्नान कराकर स्नातक की उपाधि दी जाती थी। केशान्त संस्कार शुभ मुहूर्त में किया जाता था।
समावर्तन गुरुकुल से विदाई लेने से पूर्व शिष्य का समावर्तन संस्कार होता था। इस संस्कार से पूर्व ब्रह्मचारी का केशान्त संस्कार होता था और फिर उसे स्नान कराया जाता था। यह स्नान समावर्तन संस्कार के तहत होता था। इसमें सुगन्धित पदार्थो एवं औषधादि युक्त जल से भरे हुए वेदी के उत्तर भाग में आठ घड़ों के जल से स्नान करने का विधान है। यह स्नान विशेष मन्त्रोच्चारण के साथ होता था। इसके बाद ब्रह्मचारी मेखला व दण्ड को छोड़ देता था जिसे यज्ञोपवीत के समय धारण कराया जाता था। इस संस्कार के बाद उसे विद्या स्नातक की उपाधि आचार्य देते थे। इस उपाधि से वह सगर्व गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का अधिकारी समझा जाता था। सुन्दर वस्त्र व आभूषण धारण करता था तथा आचार्यो एवं गुरुजनों से आशीर्वाद ग्रहण कर अपने घर के लिये विदा होता था.
विवाह प्राचीन काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का हमारे शास्त्रों में विधान है। वेदाध्ययन के बाद जब युवक में सामाजिक परम्परा निर्वाह करने की क्षमता व परिपक्वता आ जाती थी तो उसे गृर्हस्थ्य धर्म में प्रवेश कराया जाता था। लगभग पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का व्रत का पालन करने के बाद युवक परिणय सूत्र में बंधता था। हमारे शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है- ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस एवं पैशाच। वैदिक काल में ये सभी प्रथाएं प्रचलित थीं। समय के अनुसार इनका स्वरूप बदलता गया। वैदिक काल से पूर्व जब हमारा समाज संगठित नहीं था तो उस समय उच्छृंखल यौनाचार था। हमारे मनीषियों ने इस उच्छृंखलता को समाप्त करने के लिये विवाह संस्कार की स्थापना करके समाज को संगठित एवं नियमबद्ध करने का प्रयास किया। आज उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि हमारा समाज सभ्य और सुसंस्कृत है।
अन्त्येष्टि अन्त्येष्टि को अंतिम अथवा अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहा जाता है। आत्मा में अग्नि का आधान करना ही अग्नि परिग्रह है। धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि मृत शरीर की विधिवत् क्रिया करने से जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं। हमारे शास्त्रों में बहुत ही सहज ढंग से इहलोक और परलोक की परिकल्पना की गयी है। जब तक जीव शरीर धारण कर इहलोक में निवास करता है तो वह विभिन्न कर्मो से बंधा रहता है। प्राण छूटने पर वह इस लोक को छोड़ देता है। उसके बाद की परिकल्पना में विभिन्न लोकों के अलावा मोक्ष या निर्वाण है। मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। इसी परिकल्पना के तहत मृत देह की विधिवत क्रिया होती है।*विकिपीडिया से


Marriages and gotras

Marriages and gotras

In a patrilineal Hindu society (most common), the bride belongs to her father's gotra before the marriage, and to her husband's gotra after the marriage. The groom on the other hand only belongs to his father's gotra throughout his life.

Marriages within the gotra ('sagotra' marriages) are not permitted under the rule of exogamy in the traditional matrimonial system. The word 'sagotra' is union the words 'sa' + gotra, where 'sa' means same or similar. People within the gotra are regarded as kin and marrying such a person would be thought of as incest. The Tamil words 'sagotharan' (brother) and 'sagothari' (sister) derive their roots from the Sanskrit word 'sahodara' (सहोदर) meaning co-uterine or born of the same womb. In communities where gotra membership passed from father to children, marriages were allowed between maternal uncle and niece[2], while such marriages were forbidden in matrilineal communities, like Malayalis and Tuluvas, where gotra membership was passed down from the mother.

A much more common characteristic of south Indian Hindu society is permission for marriage between cross-cousins (children of brother and sister). Thus, a man is allowed to marry his maternal uncle's daughter or his paternal aunt's daughter, but is not allowed to marry his father's brother's daughter. She would be considered a parallel cousin who is treated as a sister.[3]

North Indian Hindu society not only follows the rules of gotra for marriages, but also had many regulations which went beyond the basic definition of gotra and had a broader definition of incestuousness.[4] Some communities in North India do not allow marriage with some other communities on the lines that both the Communities are having brotherhood.[5]

An acceptable social workaround for sagotra marriages is to perform a 'Dathu' (adoption) of the bride to a family of different gotra (usually dathu is given to the bride's maternal uncle who obviously belongs to different gotra by the same rule) and let them perform the 'kanniyadhanam' ('kanni' (virgin) + 'dhanam' (gift)). However, this is easier said as it would be quite difficult for the bride's father to watch another man give his daughter's hand away in marriage in his own presence.

Khap panchayats in Haryana have been making a huge fuss over banning "same gotra marriages." Kadyan Khap International convener Naresh Kadyan had moved a petition seeking amendment to the Hindu Marriage Act (HMA) so as to legally prohibit marriages in the same gotra. However, the petition was dismissed as withdrawn after a vacation Bench of Justices S N Dhingra and A K Pathak of the Delhi High Court warned that a heavy cost would be imposed on the petitioner for wasting the time of the court. In course of the proceedings, the bench observed, “You don’t know what is a gotra. Which Hindu text prescribes banning of sagotra (same clan) marriage? Why are you wasting the time of the court? If you are not able to substantiate your words, then you should not have come before the court.” [6

Vashisht Rishi( Gotra Rishi-Lav,Lau Mohyal Brahminas)

Have you seen the Pole Star? If you observe keenly you can see it at night in the northern part of the sky shining bright always. Below the Pole Star you will find a group of stars in the shape of inverted English letters as shown here-u). They are seven in number and are called Saptarshi Mandala or the Great Bear, a constellation. The seven saints after whom they are named are Marichi, Atri, Angiras, Pulastya, Pulaha, Kratu and Vasishta. Rishi or saint means a wise man, the man who knows the secret of the Veda.
"The Possessor of riches" = VASISHTA, whose wife was Fidelity = Arundhati. He was the son of the cow of Abundance (Delight = NANDINI). Son of Varuna and Mitra; (his mother would become the nymph Urvashi.)
The youngest of Bramha's seven sons, Rishi Vashisht. Vasishta is supposed to have been born as the result of Brahma s will power. He was a great ascetic, laboured for the welfare of the world Vasishta was not a recluse, he was householder. He was married Arundhati. Arundhati is famous for virtues and devotion to her husband there is a small star close to Vasisht in the Great Bear or Saptarshi Mandal.Vasishta had his hermitage on the banks of the river Saraswati. Arundhati spent all her time in the service of husband. He had with him thousand of disciples and taught them the Vedas as Kulapati or chief preceptor affectionately addressed Vasishta. Vasishta's daily routine was to teach his disciples, to preach dharma to the visitors and to practise tapas or austerities.
Vasishta was a great ascetic. He was the preceptor of great men like Sri Rama and Harischandra. He had conquered anger and desire. He was a great saint who humbled insolent men. As a preceptor he imparted knowledge and became a guide to thousands of aspirants.

Gothra Pattika - Gothra Pravaram - Gotra names and related Rishi varga PART-1-2

Following are the names of Rishis, to whom a specific Gothra person belong to. While prostrating to elders, one has to give these details at the end, stating his Rishis group, how many Rishis in his grouping, Soothra, and the Veda culture he belongs to, (Rg, Yajur, Sama & Atharva Veda), then his Gothra and name in that order. One need not pronounce this Abhivathanam to a Saint (Sanyasi), Kula Acharya - (the one who affixes the Shanka Chakra (The Conch & Wheel) Emblem in your arms and adopts you as His disciple/sishya) or any other women except one's mother. However, for Bruhaspathi (Vadyar) and other elders, one has to pronounce the entire abhivathanam, every time one meets them.

I list below the most used and prevailing Gothra names together Rishis' group that a specific Gotra one belong to and the pravaram one has to say while doing abhivathanam. If anyone finds a missing Gothra from the table given below, please let me know with due pravarams so as to include the same in the table. The actual benefits of prostrating (namaskaram & sashtanga namaskar, Dhandavath) is listed by a researcher and the same is published in another page of this website.

Please add the respective Rishis name from the given table, and other details in the blank spaces to complete the Abhivathana.

(1) Abivathaye,

(2) _______ _______ ______ (Names of respective Gothra Rishis, as applicable as one, two, three, five or seven Rishis from the table given below)

(3) ____________ (Choose one as applicable »Eka Risheya, »Dhwayarsheya, »Thrayaa Risheya, »Pancha Risheya, »Saptha Risheya),

(4) Pravaraanvitha:

(5) _______________ Soothra (Abasthampa Soothra/ Bhodhayana Soothraa),

(6) _______________ (Yaajusha/Samo/Rg) Gaathyaathi

(7) ________________ Gothrasya

(8) ______________________ (your name)

(9) sarmaNa: aham asbibho.




Brugu (Briku) - Twenty sub-lineage Rishis

#


Name of Gothra


Pravaram to be pronounced with Names
01 Jamadagni Bhargava, Syavana, Aabnavaana - Thrayarisheya, pravaranvitha:
02 Jaabaali Bhargava, Vaithahavya, Raivasa - Thrayarisheya, pravaranvitha:
03 Jaamadagnya Bhargava, Aurva, jamadagnya - Thrayarisheya, pravaranvitha:
04. Jaimini Bhargava, Vaithahavya, Raivasa - Thrayarisheya, pravaranvitha:
05 Bhaulathsya Bhargava, Aurva, jamadagnya - Thrayarisheya, pravaranvitha:
06 Maandookeya Bhargava, Aurva, jamadagnya - Thrayarisheya, pravaranvitha:
07 Maunabhargava Bhargava, Vaithahavya, Saavethasa - Thrayarisheya, pravaranvitha:
08 Vathoola Bhargava, Vaithahavya, Saavethasa - Thrayarisheya, pravaranvitha:
09 Srivathsa Bhargava, Syavana, Aapnavana, Aurva, Jamadagya - Pancharisheya, pravaranvitha:
10 Garthsamatha Bhargava, Garthsamatha - Dvayarisheya, pravaranvitha:
11 Kanaka Bhargava, Garthsamatha - Dvayarisheya, pravaranvitha:
12 Yagnjapathi Bhargava, Garthsamatha - Dvayarisheya, pravaranvitha:
13 Avada Bhargava, Aurva, Jamadagnya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
14 AartishENa Bhargava, AarttisheNa, AnUpa - Thrayarsheya pravaranvitha:
15 Aaswalaayana Bhargava, Vaadhyaksha, Daivadaasa - Thrayarsheya, pravaranvitha:
16 Kasyapi Bhargava, Vaidahvya, Saavethasa - Thrayarsheya, pravaranvitha:
17 Kaathyaayana Bhargava, AartishENa, AnUpa - Thrayarsheya, pravaranvitha:
18 Kaargya Bhargava, Vaithahavya, Revasa - Thrayarsheya, pravaranvitha:
19 Kruthsamatha Bhargava, Saunahothra, Gaarthsamatha - Thrayarsheya, pravaranvitha:
20 Nairruthi Bhargava, AartishENa, AnUpa - Thrayarsheya, pravaranvitha:

Aangirasa (with 27 sub lineage Rishis)
01 Uthasatha (Uthathya) Aangirasa, Audathya, Gauthama - Thrayarsheya, pravaranvitha:
02 Kamyaangirasa Aangirasa, Aamahaavya, Aurushaaya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
03 GaargEya Aangirasa, Gaargya, Chaithya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
04 GaargEya

Aangirasa, Bhaarhaspathya, Bharatheevaja, Sainya, Gargya - Pancharsheya pravaranvitha:
05 Gauthama Aangirasa, Aayarsaya, Gauthama - Thrayarsheya, pravaranvitha:
06 Paurukuthsa Aangirasa, Paurukuthsa, Thraasathasya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
07 PaatharaayaNa Aangirasa, Paurukuthsa, Thraasathasya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
08 Mauthgalya Aangirasa, Ambarisha, Mauthgalya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
09 Bharatwaja Aangirasa, Bhaarhaspathya, Bharatwaja - Thrayarsheya, pravaranvitha:
10 Mauthgalya Aangirasa, Bhargyasva, Mauthgalya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
11 Ratheethara Aangirasa, Vairoopa, Raatheethara - Thrayarsheya, pravaranvitha:
12 Vishnuvruththa Aangirasa, Pauruguthsa, Thraasathasya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
13 ShatamarshNa Aangirasa, Thraasathasya, Pauruguthsa - Thrayarsheya, pravaranvitha:
14 Sankruthi Saathya, Saankruthya, Gauriveetha - Thrayarsheya, pravaranvitha:
15 Sankruthi Aangirasa, Saaskruthya, Gauriveetha - Thrayarsheya, pravaranvitha:
16 Haritha Aangirasa, Ambarisha, Yauvanaachva - Thrayarsheya, pravaranvitha:
17 Aabasthamba Aangirasa, Bharhaspathya, Bharatwaja - Thrayarsheya, pravaranvitha:
18 Aayaasya Aangirassa, Aayaasya, Gauthama - Thrayarsheya, pravaranvitha:
19 KaNva Aangirasa, Ajameeta, KaaNva - Thrayarsheya, pravaranvitha:
20 KaNva Aangirasa, Aamaheeyava, Aurukshyasa - Thrayarsheya, pravaranvitha:
21 Kabila Aangirasa, Aamaheeyava, Aurukshyasa - Thrayarsheya, pravaranvitha:
22 Garga Aangirasa, Chainya, Gargaya (Garka) - Thrayarsheya, pravaranvitha:
23 Kuthsa Aangirasa, Ambareesha, Yauvanaachva - Thrayarsheya, pravaranvitha:
24 Kuthsa Aangirasa, Maandathra, Kauthsa - Thrayarsheya, pravaranvitha:
25 Kaundinya Aangirasa, Bharhaspathya, Bharatwaja - Thrayarsheya, pravaranvitha:
26 Paurukuthsa Aangirasa, Paurukuthsa, Aasathasya - Thrayarsheya, pravaranvitha:
27 Lohitha Aangirasa, Vaichvamitra, Lohitha - Thrayarsheya, pravaranvitha:

Aathri ( 13 sub lineage Rishis)
01 Aathreya Aathreya, Aarsanaanasa, syaavaachva - Thrayarsheya, pravaranvitha:
02 Mauthgalya Aathreya, Aarsanaanasa, Baurvaathitha - Thrayarsheya, pravaranvitha:
03 Athri Aathreya, Aarsanaanasa, syaavaachva - Thrayarsheya, pravaranvitha:
04 Uthaalaka Aathreya, Aarsanaanasa, syaavaachva - Thrayarsheya, pravaranvitha:
05 Muthkala Aathreya, Aarsanaanasa, Baurvaathitha - thrayarsheya, pravaranvitha:
06 Gauriveetha Aathreya, Aarsanaanasa, Baurvaathitha - thrayarsheya, pravaranvitha:
07 Dattathreya Aathreya, Aarsanaanasa, syaavaachva - Thrayarsheya, pravaranvitha:
08 Dhananjaya Aathreya, Aarsanaanasa, Kaavishtira - Thrayarsheya, pravaranvitha:
09 Dhaksha ( Dakshi) Aathreya, Kaavishtira, Bhaurvathitha - Thrayarsheya, pravaranvitha:
10 Bhaaleya Aathreya, Vaamarathya, Bauthrika - Thrayarsheya, pravaranvitha:
11 Pathanjala Aathreya, Aarsanaanasa, syaavaachva - Thrayarsheya, pravaranvitha:
12 Bheejaavaaba Aathreya, Aarsanaanasa, Aadhitha - Thrayarsheya, pravaranvitha:
13 Aathreya, Aarsanaanasa, syaavaachva - Thrayarsheya, pravaranvitha:

Vishwamitra ( 13 sub lineage Rishis)
01 Kausika (Kusika) Vaiswamithra, AagamarshaNa, Kausika - Thrayarsheya
02 Lohitha Vaiswamithra, Ashtaka, Lohitha - Thrayarsheya
03 Viswamithra Vaiswamithra, Devaraatha, Authala - Thrayarsheya
04 Saalaavatha Vaiswamithra, Devaraatha, Authala - Thrayarsheya
05 Kadhaka Vaiswamithra, Kadhaka - Dhwayarsheya
06 AagamarshaNa Vaiswamithra, AagamarshaNa, Kausika - Thrayarsheya
07 Gatha Vaiswamithra, Maaduchandasa, Aaja - Thrayarsheya
08 Kaathyaayana Vaiswamithra, Kathya, Adgeetha - Thrayarsheya
09 Kamakaayana Vaiswamithra, Devaseevarasa, DaivaTharasa (Rethasa) - Thrayarsheya
10 Kaalava Vaiswamithra, Devaraatha, Audhala - Thrayarsheya
11 Kausika Vaiswamithra, Salangayana, Kausika - Thrayarsheya
12 Jabhala (Jabali) Vaiswamithra, Devaraatha, Audhala - Thrayarsheya
13 Devaraatha Vaiswamithra, Devaraatha, Aulitha - Thrayarsheya

Vashishta ( 13 sub lineage Rishis)
01 Kaundinya Vaasishta, MaithravaruNa, Kaundinya - Thrayarsheya
02 Parasara Vaasishta, saakthya, Paarasarya - Thrayarsheya
03 Vaasishta Vaasishta, MaithravaruNa, Kaundinya - Thrayarsheya
04 Vasishta Vaasishta - Ekarsheya
05 Haritha Vaasishta - Ekarsheya
06 Aachvalaayana Vaasishta, Aindrapramatha, Aabarathvasasya - Thrayarsheya
07 Upamanyu Vaasishta, Aindrapramatha, Aabarathvasasya - Thrayarsheya
08 KaaNva Vaasishta, Aindrapramatha, Aabarathvasasya - Thrayarsheya
09 JaadhookarNya Vaasishta, Aindrapramatha, Aabarathvasasya - Thrayarsheya
10 Bhodayana Vaasishta, Aathreya, JaadhookarNya - Thrayarsheya
11 MithraavaruNa Vaasishta, MaithravaruNa, Kaundinya - Thrayarsheya
12 Mauthgala Vaasishta, MaithravaruNa, Kaundinya - Thrayarsheya
13 Vaasida Vaasishta, Aindrapramatha, Aaabarathvasasya - Thrayarsheya

Kachyapa/Kasyapa ( 13 sub lineage Rishis)
01 Naithruva Kasyapa Kaasyapa, Aavathsaara, Naithruva - Thrayarsheya
02 Reba Kasyapa Kaasyapa, Aavathsaara, Rebaa - Thrayarsheya
03 Saandilya Kaasyapa, Aavathsaara, Saandilya - Thrayarsheya
04 Saandilya Kasyapa, Daivala, Asitha - Thrayarsheya
05 Saandilya Kaasyapa, Aavathsaara, Naithruva, Reba, Raiba, Sandila, Chandilya - Sapthaarsheya
06 Kaasyapa Kaasyapa, Aasitha, Daivala - Thrayarsheya
07 Kachyapa Kaasyapa, Aavathsaara, Naithruva, Reba, Raiba, Sandila, Chandilya - Sapthaarsheya
08 Bruku Kaasyapa, Aavathsaara, Naithrava - Thrayarsheya
09 Maareesa Kaasyapa, Aavathsaara, Naithrava - Thrayarsheya
10 Raibya (Reba) Kaasyapa, Aavathsaara, Raibya - Thrayarsheya
11 Baukakshi Kaasyapa, Aavathsaara, Aasitha - Thrayarsheya
12 Vaathsya Kaasyapa, Aavathsaara, Raibya - Thrayarsheya
13 Kaasyapa, Aavathsaara, Aasitha - Thrayarsheya

Agasthya ( 7 sub lineage Rishis)
01 Agasthya Agasthya - Ekarisheya, pravaranvitha:
02 Idhmavaaha Agasthya - Ekarisheya, Pravaranvitha:
03 Aagasthi Agasthya, Maahendra, Maayobhuva - Thryarisheya, pravaranvitha
04 Agasthi Agasthya, Dhradyavrutha, Aidhmavaaha - Thrayarisheya, pravaranvitha:
05 Idhmavaaha Agasthya, Vaathyasva, Aidhmavaaha - thrayarisheya, pravaranvitha:
06 Pulaha Agasthya, Maahendra, Maayobhuva - Thrayarisheya, pravaranvitha:
07 Maayobhuva Agasthya, Maahendra, Maayobhuva - Thrayarisheya, pravaranvitha:

Note: In the above chart, some of the Gothra Rishis names are appearing same as in other Gothra. It is advisable to check the pravaram Rishis names from your family elders as the Gothra name with different Rishi's names are mentioned in the same script. The difference is in the Rishis sub-lineage names that should be checked with elders. For instance, Saandilya Gothra has three different pravaram with the same Gothra Rishi but the sub-lineage names of Rishis are different.

What is Gotra?

How did the people thousands of years ago realize that genetically there was transference of some unique characteristics only from father to son (in the form of Y-chromosomes) ? In recent past when it was fashionable to condemn all Indian traditional systems as of no value, non-believers have referred to 'Gothra' as archaic, unscientific, irrelevant and male chauvinistic! The Scientifically proven factor DNA type test and assertions are more closer to the Gotra lineage matters. And to the Vedic line state nothing less than what your researchers & scientists speaking about!

Modern DNA & genetic research has confirmed male line Y-chromosomal transference, through 8 generations in case of Thomas Jefferson. 'Gothra' in essence really stands for Y-chromosomal identity.

In the very recent, US President (& Author of Declaration of Independence of United States) Thomas Jefferson's paternity of his slave Sally Fleming's children has been in news. For nearly 200 years, since US president Thomas Jefferson's time, many traditionalists maintained that Jefferson did not cohabit with Sally. But some descendants of Sally maintained otherwise and claimed to be progeny of the ex-president. This old historical controversy has now been resolved using modern genetic DNA analysis methods (Source - Founding father by Eric S Lander & Joseph J Ellis and Foster et al, Nature [ Volume 396 - 5 November 19980] pages 14, 27 & 28).

The genetic DNA study of descendents of Jefferson family and Sally Fleming's family, has confirmed with very high probability that, US President Thomas Jefferson was indeed the father of at least one of the sons of Sally Fleming. How was this genetic work done? Geneticists used a scientific fact, that most of the male Y-chromosome is passed intact from father to son. Females do not carry the Y-chromosome. With modern advances in genetics, this fact has been used to trace paternal lineage, and resolve stories like Thomas Jefferson's.

Thomas Jefferson did not have surviving sons from his legal wife. But his paternal uncle's male lineage is in tact to present time.. The genetic Y-chromosome of these persons (eight generations down from Thomas Jefferson's paternal uncle) living at present time was used as the reference. This was compared with intact male line persons from (Five generations down from) Sally Fleming living presently. The geneticists used polymorph markers so that Y-chromosome can be distinguished by haplotypes. They found that Sally Fleming's son Eston's male line progeny had same haplotypes as Field Jefferson who was paternal uncle of Thomas Jefferson. Using other physical and living proximity factors, the geneticists have concluded with high probability that Eston Fleming was the son of Thomas Jefferson and Sally Fleming.

In the western countries, there are lots of research undertaken on the lineage and genealogy. But in India, there is no basis for equating genetics and race, other than specifying one's Gothram. And more interestingly, there is no female lineage taken into account! That is, if you are provided the geno-graphic profile of a random Indian, you would not be able to say to which caste or tribe that person belongs. Conversely, if you know the race of a person, you would not be able to say what genetic lineage that person will have. Race is a social phenomenon. Genetics is a biological phenomenon.

The Indian patrilineal pool is very diverse and cuts across castes and tribes. The Indian mitochondria DNA pool (female ancestry) falls into just four types, attesting to how closely related all Indians are to each other. Researchers suggest, that there is no link between language (Indo-European, Indo-Arabic and Dravidian) and genetic lineage.

Most of the genetic differences between people are superficial. However, geno-graphic profiles provide a way for us to understand our own origins and the migratory path of our ancestors (they may also be useful for understanding potential susceptibilities to certain diseases among people with different genetic lineages).

This class of human male lineage research is now very active and is being conducted in native populations of Wales, England, in Iceland and to establish uniqueness, paternity, historical lineage, medical issues and intellectual issues of heredity etc amongst various population groups. Does this not ring a bell amongst traditional Hindus who believe in 'Gothra' identification carried down from Sanathana-dharma orthodoxy?. 'Gothra' is an identity carried by male lineage in India from time immemorial. Most people have Gothra chain names traceable to Rig Vedic Rishis like 'Gowthama', 'Vasishta' 'Viswamithra' and to first sons of Vaivaswatha Manu like Angirasa & Bhrigu. Purana such as Vishnu Purana refer to individual identity through 'Gothra'. Listings of more than 250 Gothra chains have been explicitly listed. I have heard of instances of even Muslims converted from Hinduism still keeping track of their 'Gothra'.

In a classic example, I cite that Buddha, named Siddhartha was of 'Gowthama Gothra'.. It means that his Y-chromosomes were probably from Rig-Vedic Rishi 'Gowthama Rahoogana'.

Nearly 2500 years have passed since death of Lord Buddha, but many 'Gowthama Gothra' individuals exist even today. They can claim genetic relation to Buddha. Typically 4 generations occur in 100 years and in 2500 years nearly 100 generations are complete. Other 'Gothra' chains may have run 100-200 generations from Vedic period if male lineage did continue unbroken. Do Y-chromosomes remain intact after, say 100 generations of unbroken male issues? Genetic mutations may or may not have changed some Y-chromosomes. The Gotra lineage is the one aspect that is very interesting field of research for future to see if persons of same 'Gothra' in the present generations have common and unique Y-chromosomal features. Only deep study with dedicated research could bring about the truth, that Vedic Era findings are certainly more authentic and scientific one that our forefathers relied aptly.

In conclusion, considering the above, no doubt, the Gotra lineage and DNA roots, probably, are one and the same way to find out the Family tree from the roots!

गोत्र व्यवस्था :The gotra system

The origin

The gotra system is part of a system of classification or identification of various Brahmin families in ancient times. The gotra classification took form probably sometime during the Yajur Veda period, after the Rig Veda period. It is believed that the gotras (now account to a total of 49) started to consolidate some around 10-8 Century B.C. The present day gotra classification is created from a core of 8 rishis (The Saptha rishis + Agastya). The Seven rishis are Gautama, Bhardwaja, Vishwamitra, Jamadagni, Vasistha, Kashyapa and Atri. Seven Rishis (Saptarshi) are recognized as the mind born sons of the creator Brahma. They desired offspring and received it. All present day Brahmin communities are said to be descendants of these 8 Rishis.

Over the years the number of gotras incresed due to:
* Descendents of these Rishis also started new family lineage or new gotras (Kaundinya was a descendent of Vasihta, Vishwamitra was a descendent of Kaushika and Vatsa was a descendent of Jamadagni)
* By inter marriage with other Brahmins
* Inspired by a saint whose name they bear as their own Gotra.
* New groups like Kshatriyas (who were also makers of hymns) were taken into fold by some Rishis

The lines of descent from the major rishis are originally divided into Ganas [sub divisions] and each Gana is further divided into families. However, subsequently the term gotra is frequently applied to the ganas and to the families within the ganas interchangeably.

These Rishis belonged to different sects like Shakti, Shavites and Vishnavites and had different deities for worship. Such deities came to be known as the Kuladevatas.

Gotras of Gowda Saraswat Brahmins

The gotras of GSBs is believed to be originated from the ten Rishis

Bharadwaj, Kausika, Vatsa, Kaundinya, Kashyapa, Atri, Vashista, Jamadagni, Gautam and Vishwamitra (Kamshi)

Importance of Gotras

The gotra system was instituted for the purposes of identifying one's ancestors and pay respects during various invocations and other rituals to honor their fathers, fore-fathers and so on, up to their respective Rishis. This was later extended to other aspects of the Brahmin life, such as Marriage and temple worship. In present days, marriage will not be allowed within the same gotra in order to avoid impure matrimony. This thinking is in tune with the modern day genetic paradigms of hybrid vigor.
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source:
http://www.ibiblio.org/sripedia/cgi-bin/kbase/Gotra

There are 20 Gothras. Each has its own three Rishis, which are referrred to in the Pravaram.I will list the 20 Gothras/Pravaras and illustrate one of the famous Gothras with details .

Gothra & Pravara (Rishayas in parenthesis)
1. Bharadwaja : Aankirasa, Bhaarhaspatya, Bharadwaja
2. Shatamarshana : AAnkirasa, Powrukutsa,Traasatasya
3 .AAtreya : Atreya,Aarchanaasa,Syaavaasva (traya risheya)
4 .Vatula : Bhargava,Vaitahavya,Saavedasa
5 .Srivatsa : Bhargava, Syaavana,AApnavaana,Owrva, Jaamadaghnya (Oppiliappan)
6. Kowsika : Vaiswaamitra, AAgamarshana,Kowsika (traya risheya)
7. Viswamitra : Vaiswaamitra,Devaraata, Owtala
8. Kowndinya : Vaasishta,Maitraavaruna, Kowndinya (traya risheya)
9. Harita : AAnkirasa, Ambarisha,Yuvanasva (traya risheya)
10. Mowdkalya : (1) AAnkiras,Bharmyasva,Mowdgalya
(2) Tarkshya,Bharmyasva,Mowdgalya
(3) AAnkirsa, Dhavya, Mowdgalya
11. Sandilya : (1) Kasyapa,Aavatsaara,Daivala (traya risheya)
(2) Kasyapa,Aavatsaara,Sandilya
12.Naitruva kaasyapa : Kasyapa,Aavatsara,Naitruva (traya risheya)
13.Kutsa : Aankirasa, Maandhatra,Kowtsa
14.Kanva : (1) Aankirasa, Ajameeda,Kaanva
(2) Aankirasa, Kowra, Kaanva
15.Paraasara : (1) Vaasishta, Saaktya, Paarasarya
16.Aagastya : Aagastya,Tardhachyuta,Sowmavaha
17. Gargi : (1) Aankirasa,Bharhaspatya,Bharadwaja,Sainya,Gargya (traya risheya)
(2) Aangirasa, Sainya, Gaargya (pancharisheya)
18.Bhadarayana : Aankirasa,Paarshadaswa, Raatitara
19.Kasyapa : Kasyapa, Aavatsaara, Daivala (traya risheya)
20.Sunkriti : (1) Aankirasa,Kowravidha,Saankritya
(2) Sadhya,Kowravidha,Saankritya

Among the 20, based on an analysis of Pravaras, one can see the Aankirasa Rishi appears 12 times including multiple versions. Aankirasa is the Rishi with whom more than half of the Atharva Veda samhitas a re associated. An analysis of the Rishis associated with the Veda Mantras will give info on the other Rishis associated with the twenty Gothras and their lineage.

Sage Kanva is the father of Sakutala celebrated by Kaalidasa. Bhargava referes to the lineage of Bhrigu Maharishi, the foster father of Maha Lakshmi worshipped as Bhargavi. . I will now say afew words about Shatamarshana Gothram. Natha Muni, Aalavandar(Yaamuna Muni) belong to this Gothram.Bharadwaja appears in Raamayanam .

Brahma according to Puranas had 4 sons: Atri, Bhrigu,Vasishta and Ankiras.

Their lines are as follows:
1.Ankiras---) Shatamarshana(Penance in the middle of Five fires at Haridhwar and got the boon that the Sata Vayu will not affect him . Similar to the case of Satakopan(Nammalwar later).His predecessors, Purukutsar and Traasa Dasyu were authorities on Rig Vedam.Tras is made up of 3 Kinds of fear .Since these htree kinds of fear ran away fro him out of fear for his Power derived from penance, He is called Trasa Dhasyu. All the three Rishis (Ankiras, Purukutsar,Trsadasyu) are thus included in the Pravaram of Shatamarshana Gothris.

2.Bhrigu---) Valmiki and Sri Vatsa Gothram

3. Atri---) Dattatreya---) Atreya Gothram---) Atreya Ramanujar and links to Vedanta Desikan 4.Vasishta---) Sakti, Paraasara,Vyasa.(Paraasara is the author of Vishnu Puranam and Vysaa , the author of Brahma Sutrams and Puraanas.

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Source:
www.namboothiri.com/articles/gothram.htm

It is believed that every Braahmanan family has descended from one ancestral Maharshi (great seer or sage) or the other, in whose name his Gothram is attached. There are different versions in the Smrthis as to the number of Gothrams - 7, 8, 10, and so on, upto 48. "Manusmrthi" quotes 8, while "Dharma Pradeepam" speakes of 48. The famous "Dasagothrams" (ten Gothrams) are :

1. Bhaaradwaajam,
2. Kausikam,
3. Vaatsam,
4. Kaundinyam, 5. Kaasyapam,
6. Vaasishttham,
7. Jaamadagnyam, 8. Vaiswaamithram,
9. Gauthamam, and
10. Aathreyam.

"Vishnu Bhaagavatham" has reference to the following set of seven sages (Saptharshis) :

1. Mareechi,
2. Athri,
3. Angirass, 4. Pulasthyan,
5. Pulahan, 6. Krathu, and
7. Vasishtthan.

Several among the Saptharshis referred to in "Manusmrthi" as Swayambhuva Manu's progeny and ancestors are said to be creators of Rigveda Sookthams. The Saptharshis of the present Vaivaswatha Manwantharam are :

1. Vasishtthan,
2. Kaasyapan,
3. Athri, 4. Jamadagni,
5. Gauthaman, 6. Viswaamithran, and
7. Bharadwaajan.

The Chiranjeevis (those who live eternally) who are said to have become eligible to be the next set of Saptharshis are :

1. Deepthimaan,
2. Gaalavan,
3. Parasuraman,

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Formal Introduction of Brahmins

Amongst Brahmins, here is a typical introduction of oneself in Sanskrit with the listing
of ancestry (Bending over in obeisance with thumbs behind ears,

abhivadaye Aankirasa, Bhaarhaspatya, Bharadwaja traya risheya
Pravaranvita Bharadwaja Gothrotha apastamasutrah
yadushyaakadyaayai ...........sarmanam aham asmobho

I, who belong to the lineage of the three sages Aankirasa, Bhaarhaspatya, Bharadwaja and
of Bharadwaja gotra, a student of the grihastha branch of life, offer my salutations to you.

Abhivadaye (tell your rishis) (tell number) Risheya
(tell your pravara) pravaranvitha
(tell your Gothra)gothra
(tell your Suthra)suthra
(tell your Veda)adhyay1
Sri (tell your name) sarmanam aham asmibho

Tuesday, July 27, 2010

परशुराम :ऋषि और योद्धा

ऋग्वेद और पुराण की कथा में भृगुवंश का कई स्थान पर वर्णन किया गया है। इन्हीं के वंशज थे परशुराम। वेदऋषिजमदग्निइनके पिता और माता थीं रेणुका। वैशाख शुक्ल तृतीया, यानी अक्षय तृतीया को रात्रि के प्रथम प्रहर में [जो इस बार16मई को है] भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया। उन्होंने अपने पिता से वेदशास्त्रऔर धनुर्विद्या की दक्षता प्राप्त कर ली। आगे कविकुलचायमानसे मल्लयुद्ध सीखा। वे शिवजी को प्रसन्न करने के लिए गंधमादनपर्वत पर तपस्या करने चले गए। अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दिव्यास्त्रों की दीक्षा के साथ परशु और त्रयम्बकदंड भी प्रदान किया और असुरों से मुक्त करने का आशीर्वाद भी। भृगुवंशीव हैहयवंशीक्षत्रियों के बीच पीढियों से शत्रुता थी। हैहयवंशमें ही सहस्रबाहुअर्जुन का जन्म हुआ, जिसकी वीरता की चर्चा चारों ओर थी। युद्ध विद्या में पारंगत होने के बाद शिवजी ने परशुराम की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। कई दिनों तक चले द्वन्द्वयुद्ध के दौरान एक दिन त्रिशूल का वार बचाते हुए परशुराम ने शिव के मस्तक पर फरसे से प्रहार कर दिया। शिष्य के इस युद्ध कौशल से गद्गद होकर गुरु शंकर ने परशुराम को गले लगा लिया। इसके बाद शिवजी के अनन्त नामों में एक नाम खंडपरशु भी जुड गया। & इधर, सहस्रबाहुअर्जुन के अत्याचार और उत्पीडन से प्रजा त्रस्त हो रही थी। एक दिन वह परशुराम की खोज में जमदग्निऋषि के आश्रम पहुंच गया। परशुराम की अनुपस्थिति में सहस्रबाहुने संपूर्ण आश्रम को जला दिया और वहां बंधी कामधेनु गाय को अपने साथ राजमहल ले गया। यह गाय ऋषि को इंद्र से मिली थी। जब परशुराम आश्रम लौटे, तो उसके नृशंस कृत्य से अवगत हुए। वे अकेले ही महिष्मतीनगरी की ओर चल दिए। परशुराम ने राजमहल के भीतर घुसकर उन्होंने अपने फरसे से अर्जुन की सहस्रभुजाएं काट डाली। कुछ ही समय बाद सहस्रबाहुके पुत्रों, पौत्रों और कई अहंकारी क्षत्रिय राजाओं ने मिलकर जमदग्निआश्रम पर फिर से हमला बोल दिया और उनका वध कर दिया। सांयकालजब परशुराम आश्रम लौटे, तो पिता का शव देखा। वे तुरंत महिष्मतीकी ओर चल पडे। उनके कंधे पर पिता का शव था, तो पीछे थीं विलाप करती हुईं उनकी माता रेणुका। उन्होंने क्रोधित होकर क्षत्रियों का समूल नाश कर दिया। इसके बाद उन्होंने पितृ तर्पण और श्राद्ध क्रिया की। पितरोंकी आज्ञानुसार परशुराम ने अश्वमेध और विश्वजीत यज्ञ किया। इसके बाद वे दक्षिण समुद्र तट की ओर चले गए। यहीं सह्याद्रिपर्वत पर उन्होंने समुद्र में अपना परशु फेंककर भडौंचसे कन्या- कुमारी तक का संपूर्ण समुद्रगतप्रदेश समुद्र से दान भेंट में प्राप्त किया।

How to Impress Recruiter

Jerome Young, Forbes.comMon, Jul 26

Jerome Young, Forbes.com

During your job search you will review hundreds of job postings. Some will be very well written and provide quality information, while others will tell you little about the employer's needs. The majority of them have a similar format and characteristics, and they provide insight into what the employer wants--if you know what to look for.

As the founder of AttractJobsNOW.com, I have conducted extensive research on the job market and the recruiting process employers use to find and choose candidates to fill open requisitions. In the process I've learned a lot about what you can divine from a simple job posting.

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Postings can be written by a hiring manager or a recruiter, but it's usually the recruiter who receives and screens the applications. With this in mind you should be sure that your résumé will make a recruiter feel confident that you are qualified. By making the most of the insight you can glean from the following three sections of a typical job posting, you can better position yourself to impress recruiters and get interviews:

The job title: Every job posting includes a job title. It is often what first piques your interest in the posting, and it's the first thing the hiring manager thought of when he or she decided to create the position. Most job seekers overlook the intelligence the job title provides and suffer for it. The job title gives you the most likely keywords that will be used to find qualified candidates for the job, and because of that you can use it to your advantage.

At AttractJobsNOW.com we use the job title as our guide in creating effective customized résumés by ensuring that each candidate's summary statement and areas of expertise are in line with the job title. We ensure that the words in the job title appear prominently throughout the résumé, so that our clients will appear at the top of candidate searches. As a result, more than 95% of our candidates succeed in getting job interviews at their companies of interest.

Responsibilities: The responsibilities section describes what will be expected of the employee in the position. You'll often find that there are five to 10 bullet points in this section, but in our research with recruiters and hiring managers we've found that the first three responsibilities are the most important. Job postings are usually based on a primary business need to which additional responsibilities are added to create a full-time position. Your résumé should focus on your experience, results and accomplishments in the tasks outlined in the first three bullets in the responsibilities section. Also you'll find keywords in those first three bullets that recruiters will use in searching for qualified candidates.

Qualifications: The qualifications section provides insight into the experience, skills and education the hiring manager has in mind for the person they feel will be capable of excelling in the role. As in the responsibilities section, the first three qualifications are usually the most important. If you meet those top three qualifications, you should directly say so in the summary section at the top of your résumé, to instantly inform the hirer that you're qualified and to persuade them to read the rest of your résumé. If you don't meet the top three qualifications but have others strengths that qualify you to excel, definitely mention them in your summary section.

Taking the time to analyze job postings and customize your résumé based on their job titles, responsibilities and qualifications is often the difference between receiving interviews and being screened out of the recruiting process.

Jerome Young is the founder and president of AttractJobsNOW.com, a job search and recruiting consulting firm.

Wednesday, July 21, 2010

मोहयालों की उच्चतम संस्था ' जनरल मोहयाल सभा ' के चुनाव होने जा रहे हैं। मतदाताओं के पास डाक से मतपत्र 12 अगस्त को भेजे जाएँगे। अपनी पसंद 40 प्रतिनिधिओं के नाम के आगे निशान लगाकर मतपत्र वापस तीन सितम्बर तक जी एम एस कार्यालय में पहुंचा दें।सभी मोहयालों से अनुरोध है कि वे ऐसे प्रतिनिधियों को चुनें -
*जिन्होंने बिरादरी की निःस्वार्थ भाव से सेवा की है और करते रहे हैं
*जिनके मन में बिरादरी के विकास की भावना है
*जिनके मन में मोहयाली भावना है
*जो बिरादरी के लिए बने संस्थानों की रक्षा करने में समर्थ हैं
*जो बिरादरी में राजनीति करें
*जो बिरादरी की एकता को बढाएं
*जो युवाओं के लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकें
*जिनमें मोहयाल संस्कृति के प्रति आस्था है
*जिनका व्यवहार आदर्श है
*जो बिरादरी की सेवा करने के लिए समय निकाल सकें
*जो हर महीने जनरल मोहयाल सभा की मीटिंग में भाग लें
*जो यथाशक्ति और यथासामर्थ्य बिरादरी के लिए समर्पित होकर काम करें
आशा है प्रत्येक मतदाता अपने विवेक से सोच-समझकर मत देगा।पिछले वर्षों में जो काम हुए हैं उन्हें आगे बढ़ाना है और मोहयालों के नाम को चार चाँद लगाना है।
जय मोहयाल !
----दिनेश वैद

सोच-समझकर प्रतिनिधि चुनें

मोहयालों की उच्चतम संस्था ' जनरल मोहयाल सभा ' के चुनाव होने जा रहे हैं। मतदाताओं के पास डाक से मतपत्र 12 अगस्त को भेजे जाएँगे। अपनी पसंद 40 प्रतिनिधिओं के नाम के आगे निशान लगाकर मतपत्र वापस तीन सितम्बर तक जी एम एस कार्यालय में पहुंचा दें।
सभी मोहयालों से अनुरोध है कि वे ऐसे प्रतिनिधियों को चुनें -
*जिन्होंने बिरादरी की निःस्वार्थ भाव से सेवा की है और करते रहे हैं
*जिनके मन में बिरादरी के विकास की भावना है
*जिनके मन में मोहयाली भावना है
*जो बिरादरी के लिए बने संस्थानों की रक्षा करने में समर्थ हैं
*जो बिरादरी में राजनीति करें
*जो बिरादरी की एकता को बढाएं
*जो युवाओं के लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकें
*जिनमें मोहयाल संस्कृति के प्रति आस्था है
*जिनका व्यवहार आदर्श है
*जो बिरादरी की सेवा करने के लिए समय निकाल सकें
*जो हर महीने जनरल मोहयाल सभा की मीटिंग में भाग लें
*जो यथाशक्ति और यथासामर्थ्य बिरादरी के लिए समर्पित होकर काम करें
आशा है प्रत्येक मतदाता अपने विवेक से सोच-समझकर मत देगा।पिछले वर्षों में जो काम हुए हैं उन्हें आगे बढ़ाना है और मोहयालों के नाम को चार चाँद लगाना है।
जय मोहयाल !
-अपीलकर्ता
सुनील
दत्ता, नई दिल्ली

जनरल मोहयाल सभा के चुनाव : अपील

मोहयालों की उच्चतम संस्था ' जनरल मोहयाल सभा ' के चुनाव होने जा रहे हैं। मतदाताओं के पास डाक से मतपत्र 12 अगस्त को भेजे जाएँगे। अपनी पसंद 40 प्रतिनिधिओं के नाम के आगे निशान लगाकर मतपत्र वापस तीन सितम्बर तक जी एम एस कार्यालय में पहुंचा दें।सभी मोहयालों से अनुरोध है कि वे ऐसे प्रतिनिधियों को चुनें -
*जिन्होंने बिरादरी की निःस्वार्थ भाव से सेवा की है और करते रहे हैं
*जिनके मन में बिरादरी के विकास की भावना है
*जिनके मन में मोहयाली भावना है
*जो बिरादरी के लिए बने संस्थानों की रक्षा करने में समर्थ हैं
*जो बिरादरी में राजनीति करें
*जो बिरादरी की एकता को बढाएं*जो युवाओं के लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकें
*जिनमें मोहयाल संस्कृति के प्रति आस्था है
*जिनका व्यवहार आदर्श है
*जो बिरादरी की सेवा करने के लिए समय निकाल सकें
*जो हर महीने जनरल मोहयाल सभा की मीटिंग में भाग लें
*जो यथाशक्ति और यथासामर्थ्य बिरादरी के लिए समर्पित होकर काम करें
आशा है प्रत्येक मतदाता अपने विवेक से सोच-समझकर मत देगा।पिछले वर्षों में जो काम हुए हैं उन्हें आगे बढ़ाना है और मोहयालों के नाम को चार चाँद लगाना है।
जय मोहयाल ! -अपीलकर्ता
एस के लौ,जयपुर।